पंचतंत्र की कहानी : इस दुनिया को जैसा देखोगे वैसा दिखेगी

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बच्चाघर के इस लेख में आज हम आपके लिए बहुत ही ज्ञानवर्धक नैतिक रोचक कहानी सुनने जा रहे हैं। जोकि आपके बच्चे के ज्ञान वृद्धि में सहायक होगा। यह कहानी आपके बच्चे का सकारात्मक सोच और आत्मविश्वश को मजबूत करने में भी मदद करेगी। जबकि इस कहानी के माध्यम से बच्चे के अंदर व्यावसायिक ज्ञान भी प्राप्त होगा, जोकि इस प्रकार हैं:

दो सच्चे दोस्त की कहानी:

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यह कहानी दो दोस्तों की हैं जो बहुत गरीब होने के कारण आगे की पढ़ाई न कर पाने की वजह से अपने परिवार का जीवन यापन करने के लिए हमेशा चिंतित रहते थे। एक दोस्त का नाम रामू तथा दूसरे का नाम श्यामू था। रामू बिना सोचे समझे फैसले लेने के लिए जाना जाता था। जबकि, श्यामू बहुत दिमागदार और किसी भी काम को गहराई से चिंतन करने के बाद करता था

एक दिन रामू और श्यामू ने सोचा चलो किसी शहर चलते हैं जहाँ पर हम अपने जीवन यापन के लिए पैसे कमा सके। अगले दिन दोनों ने सुंदरपुर नामक शहर के लिए निकल गये। जहाँ पर उनके कुछ रिश्तेदार रहते थे उन्ही के पास रह कर दोनों नौकरी की तलास में जुट गये। इस शहर में कई दिन बीत गये थे। रामू और श्यामू को किसी भी प्रकार की नौकरी नहीं मिल पा रही थी। दोनों अब बहुत निराश हो चुके थे, बस यही सोचते थे की हमें कोई नौकरी नहीं मिल पा रही हैं हमारे परिवार का भरण-पोषण कैसे होगा?

एक माह के बाद अब दोनों ने मन बना लिया था की चलो अपने गाँव चलते हैं वहीं पर ही कुछ करेंगे। अगले दिन दोनों अपने गाँव जाने के लिए रेलवे स्टेशन पर पहुचे थे, ट्रेन आने में देरी थी दोनों बहुत मायूस थे और सोच रहे थे हम अपने गाँव में लोगों को क्या बताएंगे? तभी एक भले आदमी ने दोनों से पूछा, बेटा आप दोनों बहुत दुखी लग रहे हो क्या बात है? हमें कुछ बता सकते हो, शायद मैं आप की कुछ मदद कर सकूं

रामू ने बोला क्या बताऊँ बाबा मैं अपने गाँव से इस शहर में नौकरी की तलास में आया था। लेकिन, हमें कही पर कोई नौकरी नहीं मिली पायी जिसके कारण हम लोग इस शहर को छोड़ कर जा रहे हैं। उस बाबा ने बोला, बस इतनी सी बात पर आप लोग दुखी हो। आप लोगों अगर हमारी कंपनी में नौकरी करना चाहे तो मैं दिलवा सकता हूँ। बाबा की बात सुन दोनों के आँखें खुशी से चमक उठी। और एक साथ में बोलें हाँ हम दोनों करने के लिए तैयार हैं।

बाबा के साथ दोनों दोस्त उनके घर गये और रात वही पर व्यतीत किया अगली सुबह बाबा ने अपने साथ दोनों को अपनी कंपनी ले गये और अपने कंपनी के मालिक से परिचय करा कर सारी बात बता दी। कंपनी के मालिक ने दोनों से कुछ सवाल-जवाब के माध्यम से उनके अंदर के गुणों को जाना और बोल आज से तुम दोनों हमारे कंपनी के कर्मचारी हो।

लेकिन एक परीक्षा से आप दोनों को गुजरना पड़ेगा, जिसमें सफल होकर आप लोग हमारे कर्मचारियों का नेतृव कर सकते हैं। इसके लिए आप दोनों को अधिक तनख़्वाह और रहने खाने की व्यवस्था भी दी जाएगी। इस बात के लिए दोनों मंजूर हो गये।

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अगली सुबह रामू और श्यामू कंपनी जल्दी आ गये और अपने मालिक के आने का इंतजार करने लगे कुछ समय बाद कंपनी का मालिक भी आ गया दोनों को समय पर कंपनी में देख खुश हुआ। रामू को एक बैग देते हुए बोला इसके अंदर दस जोड़े चप्पल और जूते हैं जिसको आपको यहाँ से कुछ दूर शिवपुर नामक गाँव में जाकर बेचकर आना हैं। रामू खुश हुआ और उस बैग को लेकर चला गया।

शिवपुर गाँव पहुँच कर देखा तो किसी के पैर में चप्पल-जूते नहीं थे। रामू सोचने लगा इस गाँव में हम चप्पल-जूते कैसे बेचे यहाँ तो कोई चप्पल-जूते पहनता नहीं हैं कौन लेगा हमारा चप्पल-जूते। यह सब सोच कर रामू वापस कंपनी आ गया। रामू को जल्दी कंपनी में वापस आए देख, मालिक ने बोल अरे! रामू तुम चप्पल-जूते बहुत जल्दी बेचकर आ गये। रामू ने अपने मालिक को सारी बात बताई मालिक मुस्कुरा के चुप हो गये।

इस प्रकार मालिक ने वही बैग श्यामू को देते हुए वही बात फिर से दोहराई। श्यामू शिवपुर गाँव पहुच कर देखा तो सच में वहाँ कोई चप्पल-जूते नहीं पहनता थायह सब देख श्यामू के आँखों में खुशी की लहर दौड़ उठी। उसने गाँव वालों के पास गया और चप्पल और जूते और उसके फ़ायदे के बारे में बताया। देखते ही देखते उसके सभी जूते और चप्पल कुछ ही मिनट के अंदर बिक गये और श्यामू भागते-भागते अपने मालिक के पास पहुँचा।

श्यामू अपने मालिक से बोला वहाँ पर किसी के पास चप्पल-जूते नहीं हैं हम पूरे गाँव को चप्पल-जूते पहना सकते हैं। जोकि गाँव वाले मुझसे और मांग कर रहे हैं। श्यामू की बातें सुन मालिक ने बोला, तुम परीक्षा मे सफल हुए आज से तुम हमारे सभी कर्मचारियों का नेतृव करोगे। जबकि रामू तुम्हारे साथ रहकर सीखेगा। उस दिन के बाद से श्यामू ने बहुत सारे चप्पल-जूते बनवाने लगा और शिवपुर गाँव के सभी व्यक्तियों को चप्पल-जूते बेच दिये।

नैतिक सीख🧠: सोच बदलो, जिस नजरिए से लोगों को देखोगे ठीक वैसे आपको यह दुनिया दिखेगी। रामू ने सोचा की हम यहाँ किसी को जूते-चप्पल नहीं पहना सकते हैं। क्योंकि, लोग पहनते नहीं हैं। जबकि, श्यामू को लगा की हम यहाँ सभी को जूते-चप्पल पहना सकते हैं। क्योंकि किसी के पैर में जूते-चप्पल नहीं हैं।

पंचतंत्र की कहानियाँ:

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Last Reviewed: 06 May 2024

Next Review: 06 May 2025

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